30 अक्टूबर, 1909 - 24 जनवरी, 1966
डॉ. होमी जहांगीर भाभा ने भारत में परमाणु कार्यक्रम की शुरुआत की थी। डॉ भाभा ने 1945 में परमाणु विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान करने के लिए टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (टीआईएफआर) की स्थापना की थी। राष्ट्र के लाभ के लिए परमाणु ऊर्जा के दोहन के प्रयास को तेज करने के लिए, डॉ. भाभा ने भारत के महत्वाकांक्षी परमाणु कार्यक्रम के लिए आवश्यक बहु-विषयक अनुसंधान कार्यक्रम हेतु जनवरी 1954 में परमाणु ऊर्जा प्रतिष्ठान, ट्रॉम्बे (एईईटी) की स्थापना की थी। 1966 में भाभा के दुखद निधन के बाद, परमाणु ऊर्जा प्रतिष्ठान, ट्रॉम्बे (एईईटी) का नाम बदलकर भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बीएआरसी) कर दिया गया।
परमाणु ऊर्जा अनुसंधान और विकास कार्यक्रम के विस्तार में सहायक मानवशक्ति की जरूरत को पूरा करने के लिए डॉ. भाभा ने बीएआरसी प्रशिक्षण विद्यालय की स्थापना की। भाभा के अनुसार "आने वाले कुछ दशकों में जब परमाणु ऊर्जा से बिजली उत्पादन शुरू हो जायेगा, तब भारत में ही इतने विशेषज्ञ मिलेंगे कि हमें इसके लिए विदेश जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी"। डॉ भाभा ने परमाणु विज्ञान और इंजीनियरिंग के सभी क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बनने पर ज़ोर दिया।
भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) से ही अन्य अनुसंधान एवं विकास (R&D) संस्थानों जैसे इंदिरा गांधी सेंटर फॉर एटॉमिक रिसर्च (IGCAR), राजा रमन्ना सेंटर फॉर एडवांस्ड टेक्नोलॉजी (RRCAT), वेरिएबल एनर्जी साइक्लोट्रॉन सेंटर (VECC), आदि का उद्भव हुआ है, जो अग्रणी कार्य करते हैं।
भारत के समग्र विद्युत क्षेत्र की कार्बन तीव्रता को कम करने में परमाणु ऊर्जा की महत्वपूर्ण भूमिका है। सभी स्रोतों से 234,048 मेगावाट ताप विद्युत का उत्पादन होता है, जो कुल संस्थापित विद्युत का 60% है, जबकि नवीकरणीय, जल और परमाणु स्रोत से क्रमशः 95,875 (25%), 51,220 (13%) और 6,780 (2% तक) मेगावाट का उत्पादन होता है । स्रोत नेशनल पावर पोर्टल।
ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोत पर्यावरण के अनुकूल हैं, परंतु वे निरंतर उपलब्ध नहीं हैं। परमाणु ऊर्जा एक निरंतर और सघन ऊर्जा स्रोत है जिससे कार्बन उत्सर्जन नगण्य होता है और यह भारत के अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरणीय उद्देश्यों को पूरा करने के लिए भारतीय ऊर्जा -मिश्रण का एक महत्वपूर्ण अंग है।
भारत के पास यूरेनियम के घरेलू संसाधन सीमित हैं जबकि थोरियम प्रचुर मात्रा में है। थोरियम का दोहन करने के लिए, हमारे योजनाकारों ने तीन चरणीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम की योजना बनायी है।
पहले चरण के भारतीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम का आधार स्वदेश निर्मित दाबित भारी पानी रिएक्टर (PHWRs) हैं। दाबित भारी पानी रिएक्टरों में ईंधन के रूप में 0.7% विखंडनीय 235U और 99.3% 238U युक्त घरेलू प्राकृतिक यूरेनियम (UO2) और विमन्दक एवं प्राथमिक शीतलक के रूप में भारी पानी का उपयोग किया जाता है।
दाबित भारी पानी रिएक्टरों (PHWRs) से भुक्तशेष र्इंधन का पुनस्संसाधन और अपशिष्ट प्रबंधन तीन चरणीय परमाणु कार्यक्रम के महत्वपूर्ण घटक हैं। ये प्रौद्योगिकियाँ पूरी तरह से स्वदेशी प्रयासों के साथ विकसित की गईं । यूरेनियम और प्लूटोनियम रासायनिक रूप से अलग किए जाते हैं और पुनः उपयोग में लाए जाते हैं,, जबकि अन्य रेडियोधर्मी विखंडन उत्पादों को उनकी अर्धायु और रेडियोसक्रियता के अनुसार अलग और क्रमबद्ध किया जाता है और इस तरह से संग्रहीत किया जाता है कि उन पर पर्यावरण का प्रभाव कम से कम हो।
भुक्तशेष ईंधन से निष्कासित 239Pu, द्रुत प्रजनक रिएक्टरों (FBR) के लिए र्इंधन के रूप में कार्य करता है जो परमाणु कार्यक्रम के दूसरे चरण का हिस्सा है। द्रुत प्रजनक रिएक्टर (FBR) ईंधन को इस तरह डिज़ाइन किया गया है कि 238U का एक आवरण ईंधन कोर को घेर लेता है। 238U के रूपांतरण से नया 239Pu बनता है। इस प्रकार एक FBR 239Pu को नष्ट करने के साथ साथ और नए 239Pu भी बनाता है। लेकिन FBR तकनीक बहुत जटिल है और केवल उन्नत देशों जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका (USA), ग्रेटब्रिटेन (UK), फ्रांस, जापान और सोवियत संघ (USSR) ने ही इसमें महारत हासिल की है।
भारत ने इस विशिष्ट क्लब में उस समय प्रवेश किया जब अक्टूबर 1985 में इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केंद्र, कलपक्कम में 40 मेगावाट क्षमता वाला द्रुत प्रजनक जाँच रिएक्टर (FBTR) क्रिटिकल हो गया था। द्रुत प्रजनक जाँच रिएक्टर (FBTR) की एक अनूठी विशेषता Pu से समृद्ध स्वदेशी रूप से विकसित U-Pu कार्बाइड ईंधन है। फास्ट ब्रीडर रिएक्टर से प्राप्त प्रचालनात्मक अनुभव के आधार पर भारत ने 500 मेगावाट क्षमता वाले प्रोटोटाइप फास्ट ब्रीडर रिएक्टर (PFBR) के निर्माण कार्य की शुरूआत की है।
232Th भारत में प्रचुर मात्रा में है, जोकि विखण्ड्य पदार्थ नहीं है। हालाँकि, एक न्यूट्रॉन प्रग्रहण अभिक्रिया द्वारा, 232Th, 233U में बदल जाता है, जो कि 235U और 239Pu की तरह विखण्ड्य पदार्थ है। तीन चरणीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम का उद्देश्य 232Th को द्रुत रिएक्टर 233U में बदलना है। 233U भविष्य में परमाणु कार्यक्रम के तीसरे चरण में ईंधन के रूप में कार्य करेगा। इसके अलावा, प्रगत भारी पानी रिएक्टरों (AHWRs) में प्लूटोनियम आधारित ईंधन के एक छोटे से भरण (feed) के साथ थोरियम का उपयोग करने का प्रस्ताव है, जिससे बड़े पैमाने पर थोरियम के उपयोग की उम्मीद है।
भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) में रिएक्टर प्रौद्योगिकियों, ईंधन पुनस्संसाधन और अपशिष्ट प्रबंधन, समस्थानिक अनुप्रयोग, विकिरण प्रौद्योगिकियों और स्वास्थ्य, कृषि और पर्यावरण में उनके अनुप्रयोग, त्वरक और लेजर प्रौद्योगिकी, इलेक्ट्रॉनिक्स, मापयंत्रण और रिएक्टर नियंत्रण एवं पदार्थ विज्ञान में अनुसंधान और विकास के लिए सक्रिय समूह हैं। विज्ञान के कई प्रमुख विषयों में मूलभूत और अनुप्रयुक्त अनुसंधान पर जोर देने से मूलभूत अनुसंधान और प्रौद्योगिकी विकास के बीच तालमेल संभव हो गया है।
अप्सरा-यू (अप्सरा-अपग्रेडेड) को सफलतापूर्वक कमीशन किया गया था और 10 सितंबर 2018 को इसकी क्रांतिकता का पहला उपागम (FAC) प्राप्त किया गया था। रिएक्टर में स्वदेशी रूप से विकसित निम्न समृद्ध यूरेनियम (LEU) ईंधन यूरेनियम सिलिसाइड के रूप में उपयोग किया जाता है। पूल के शीर्ष पर गर्म पानी की परत की अवधारणा, भारत में अपनी तरह की पहली अवधारणा है जो, विकिरण की मात्रा को कम करने के लिए नियोजित की जाती है। उच्च न्यूट्रॉन अभिवाह (flux) गुण के कारण, अप्सरा-यू विभिन्न सामाजिक अनुप्रयोगों के लिए रेडियो आइसोटोप के स्वदेशी उत्पादन को बढ़ाएगा। परमाणु भौतिकी, पदार्थ विज्ञान और विकिरण परिरक्षण में अनुसंधान के लिए भी रिएक्टर का बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाएगा। अधिक जानकारी के लिए पढ़ें ...
अप्सरा ने 4 अगस्त, 1956 को क्रांतिकता प्राप्त की और क्रांतिकता प्राप्त करने वाला एशिया का पहला अनुसंधान रिएक्टर था। यह 1 मेगावाट शक्ति का एक पूल प्रकार का रिएक्टर था जिसमें ईंधन (4.5 किलोग्राम) के रूप में अत्यधिक समृद्ध यूरेनियम प्लेटों के रूप में था। हल्के पानी का उपयोग विमंदक और शीतलक दोनों के रूप में किया जाता था। अधिकतम न्यूट्रॉन अभिवाह (flux) लगभग 1013 न्यूट्रॉन/सेमी2 सेकंड था। यह मुख्य रूप से समस्थानिक के उत्पादन, मूलभूत अनुसंधान, परिरक्षण प्रयोगों, न्यूट्रॉन सक्रियण विश्लेषण, न्यूट्रॉन रेडियोचित्रण और न्यूट्रॉन संसूचकों के परीक्षण के लिए उपयोग किया जाता था। अप्सरा को जून, 2009 में स्थायी रूप से बंद कर दिया गया। अधिक जानकारी के लिए पढ़ें ...
जरलिना प्राकृतिक यूरेनियम धात्विक ईंधन पर आधारित एक 100 वाट का थर्मल रिएक्टर था और भारी पानी का उपयोग विमंदक और शीतलक दोनों के रूप में किया जाता था। इसने 14 जनवरी, 1961 में क्रांतिकता प्राप्त की। इसका मुख्य रूप से रिएक्टर जालक (lattice) अध्ययन के लिए उपयोग किया गया और 1983 में इसे विसंयोजित (decommissioned) कर दिया गया। अधिक जानकारी के लिए पढ़ें ...
साइरस रिएक्टर (40 मेगावाट) कनाडा के सहयोग से बनाया गया था और 10 जुलाई 1960 को कमीशन किया गया था। न्यूट्रॉन बीम, सामग्री विकिरण, ईंधन परीक्षण, न्यूट्रॉन सक्रियण विश्लेषण के उपयोग और चिकित्सा, कृषि और उद्योग में अनुप्रयोगों के लिए रेडियो समस्थानिक का उत्पादन करके संघनित पदार्थ अनुसंधान के लिए साइरस का बड़े पैमाने पर उपयोग किया गया था। साइरस रिएक्टर इंजीनियरों और वैज्ञानिकों के प्रशिक्षण और प्राकृतिक यूरेनियम, भारी पानी एवं रिएक्टर प्रणालियों के प्रबंधन की जटिलताओं को समझने के लिए एक उत्तम प्लैटफ़ॉर्म था, जो बाद में भारतीय दाबित भारी पानी रिएक्टर कार्यक्रम का हिस्सा बना। 50 वर्षों के सफल संचालन के बाद, दिसंबर 2010 में इसे स्थायी रूप से बंद कर दिया गया। अधिक जानकारी के लिए पढ़ें ...
ध्रुव रिएक्टर की कल्पना रेडियोसमस्थानिक और उच्च अनुसंधान की बढ़ती मांग के अलावा मूलभूत विज्ञान में अनुसंधान के लिए उच्च न्यूट्रॉन अभिवाह वाले अनुसंधान रिएक्टर की आवश्यकता के कारण 1970 के दशक में की गई थी। ध्रुव का निर्माण भारत में स्वदेशी परमाणु प्रौद्योगिकी के विकास और क्रियान्वयन में एक प्रमुख मील का पत्थर था। रिएक्टर में बहु-विषयक उपयोगकर्ता समुदाय को संतुष्ट करने के अलावा उच्च विशिष्ट गतिविधि के रेडियोसमस्थानिकों के उत्पादन जैसी कई विशेषताएं शामिल हैं। ध्रुव, न्यूट्रॉन बीम अनुसंधान के लिए भारतीय वैज्ञानिक समुदाय की जरूरतों को पूरा करने हेतु एक राष्ट्रीय सुविधा है जहां बीएआरसी के वैज्ञानिक, परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE) की अन्य इकाइयां, विश्वविद्यालय और राष्ट्रीय प्रयोगशालाएं सहयोगात्मक रूप से काम करते हैं। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग - डीएई कंसोर्टियम फॉर साइंटिफिक रिसर्च (UGC-DAE-CSR) और बोर्ड ऑफ रिसर्च इन न्यूक्लियर साइंसेज (BRNS) द्वारा अनेक तरह के सहयोग प्राप्त होते हैं। अधिक जानकारी के लिए पढ़ें ...
पूर्णिमा-I भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) में निर्मित पहला प्रायोगिक द्रुत रिएक्टर था जिसमें ईंधन के रूप में प्लूटोनियम ऑक्साइड का उपयोग किया गया था। यह 1 वाट का रिएक्टर था जिसने 18 मई 1972 को क्रांतिकता प्राप्त की और इसका उपयोग द्रुत रिएक्टर भौतिकी के अध्ययन के लिए किया गया था। 1973 में इसे विसंयोजित (decommissioned) कर दिया गया। अधिक जानकारी के लिए पढ़ें ...
पूर्णिमा -II भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) में 100 मेगावाट प्रायोगिक थर्मल रिएक्टर था जिसने 10 मई, 1984 को क्रांतिकता प्राप्त की। यह रिएक्टर 233U पर संचालित हुआ जिसमें ईंधन के रूप में यूरेनिल नाइट्रेट विलयन और विमंदक और शीतलक दोनों के रूप में हल्के पानी का प्रयोग हुआ। पूर्णिमा-II में अधिकतम न्यूट्रॉन अभिवाह (flux) 107 न्यूट्रॉन/सेमी2/सेकंड था। इस रिएक्टर का उद्देश्य 233U ईंधन का मूल्यांकन और भविष्यवादी रिएक्टर का अध्ययन था और 1986 में इसे विसंयोजित (decommissioned) कर दिया गया।अधिक जानकारी के लिए पढ़ें ...
पूर्णिमा-III एक अन्य 233U पर आधारित 1 वाट का तापीय रिएक्टर था जिसे भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) में बनाया गया था जिसका उद्देश्य कामिनी रिएक्टर के लिए पूर्वाभ्यास (mockup) अध्ययन करना था। इसने 9 नवंबर, 1990 को क्रांतिकता प्राप्त की। अपने पूर्ववर्ती की तरह, यह रिएक्टर भी हल्के पानी पर विमंदक और शीतलक दोनों के रूप में संचालित होता था। पूर्णिमा-III में 108 न्यूट्रॉन/सेमी2/सेकंड का अधिकतम न्यूट्रॉन अभिवाह था। 1991 में इसे विसंयोजित (decommissioned) कर दिया गया। अधिक जानकारी के लिए पढ़ें ...
प्रगत भारी पानी रिएक्टर (AHWR-CF) के लिए क्रांतिक सुविधा (Critical Facility) ने 7 अप्रैल, 2008 को पहली क्रांतिकता प्राप्त की। क्रांतिक सुविधा मूल रूप से अंतर्निहित डिज़ाइन विशेषताओं वाला एक अल्प शक्ति अनुसंधान रिएक्टर है जो प्रगत भारी पानी रिएक्टर (AHWR) और 500 मेगावाट दाबित भारी पानी रिएक्टर (PHWR) के लिए विभिन्न रिएक्टर भौतिकी प्रयोगों की आवश्यकताओं के अनुसार विभिन्न क्रोड विन्यासों का अनुकरण करने के लिए परिवर्तनीय जाली अंतराल में ईंधन छड़ों, सुरक्षा छड़ों और प्रायोगिक असेंबलियों की व्यवस्था की अनुमति देता है। क्रांतिक सुविधा को 108 न्यूट्रॉन/सेमी2/सेकंड के औसत अभिवाह के साथ 100 वाट की न्यूनतम शक्ति के लिए डिज़ाइन किया गया है। आवश्यकतानुसार, रिएक्टर की शक्ति 109 न्यूट्रॉन/सेमी2/सेकंड के तापीय न्यूट्रॉन अभिवाह स्तर को प्राप्त करने के लिए थोड़े समय के लिए 400 वाट तक जा सकती है। यद्यपि क्रांतिक सुविधा को प्रगत भारी पानी रिएक्टर (AHWR) के रिएक्टर भौतिकी डिजाइन को मान्य करने के लिए डिज़ाइन किया गया है, इसका उपयोग न्यूट्रॉन सक्रियण विश्लेषण, परमाणु संसूचक परीक्षण और अवशोषक सामग्री की नकारात्मक प्रतिक्रियाशीलता के आकलन के लिए किया जाता है। अधिक जानकारी के लिए पढ़ें .......