रेडियोसक्रिय अपशिष्टों का कुशलतापूर्वक निपटान
नाभिकीय ईंधन चक्र से संबंधित कोई भी सक्रियता, जो रेडियोसक्रिय पदार्थों (radioactive materials) का उत्पादन या उनका उपयोग करती है, रेडियोसक्रिय अपशिष्ट जनन करती है। विकिरण उत्सर्जी रेडियोसक्रिय पदार्थ (radiation emitting radioactive material) का प्रबंधन चिंताजनक विषय है और यही नाभिकीय अपशिष्टों को अलग करता है। नाभिकीय ऊर्जा की सार्वजनिक स्वीकार्यता (Public acceptance) काफी हद तक रेडियोसक्रिय अपशिष्टों के सुरक्षित प्रबंधन के लिए सार्वजनिक आश्वासन (public assurance) पर निर्भर करती है। विषाक्त औद्योगिक अपशिष्टों की तुलना में विशेष रूप से सभी नाभिकीय अपशिष्ट जोखिमी (hazardous) या प्रबंधन के लिए कठिन नहीं होते हैं। रेडियोसक्रिय अपशिष्टों का सुरक्षित प्रबंधन हमारे परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम की शुरुआत से ही उच्च प्राथमिकता में रहा है। अंतरराष्ट्रीय दिशानिर्देशों के अनुसार, अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली के लिए दुनिया भर में सिद्धांतों और मानकों का एक एक संबद्ध समावेशी (coherent comprehensive) और संगत सेट का पालन किया जा रहा है। रेडियोसक्रिय अपशिष्टों का प्रबंधन इस तरह किया जाएगा कि कर्मीओं, जन समुदाय (वर्तमान और भावी पीढ़ी) और पर्यावरण को कोई अनुचित विकिरण जोखिम न हो।
इन अपशिष्टों का प्रबंधन हैंडलिंग, उपचार, कंडीशनिंग, अभिगमन, भंडारण और निपटान से लेकर सभी प्रकार की गतिविधियों को शामिल किया गया है। भारत में आधुनिक तकनीकी विकास से समाज के अनुप्रयोग के लिए रेडियोसक्रिय अपशिष्ट से मूल्यवान रेडियोन्यूक्लाइड की प्राप्ति के साथ-साथ रेडियोसक्रिय अपशिष्ट के प्रबंधन में उच्चतम स्तर की सुरक्षा सुनिश्चित होती है। रेडियोसक्रिय अपशिष्टों को समझना
रेडियोसक्रिय अपशिष्टों को समझना
नाभिकीय ईंधन चक्र के विभिन्न प्रचालनों के साथ-साथ विभिन्न सामाजिक अनुप्रयोगों के लिए रेडियोन्यूक्लाइड के उत्पादन और उपयोग के दौरान रेडियोसक्रिय अपशिष्ट उत्पन्न होता है। युरेनियम अयस्क का खनन और नाभिकीय ईंधन का फैब्रिकेशन, नाभिकीय रिएक्टर से विद्युत उत्पादन, भुक्तशेष नाभिकीय ईंधन का पुनर्संसाधन (processing of spent nuclear fuel), रेडियोसक्रिय अपशिष्ट का प्रबंधन, विभिन्न औद्योगिक और चिकित्सा अनुप्रयोगों के लिए रेडियोन्यूक्लाइड का उत्पादन और उपयोग, रेडियोसक्रिय पदार्थ से जुड़े अनुसंधान आदि सक्रियता विभिन्न प्रकार के रेडियोसक्रिय अपशिष्ट उत्पन्न करते हैं। रेडियोसक्रिय अपशिष्ट गैस, तरल या ठोस रूप में होते है और इसकी सक्रियता का स्तर भिन्न हो सकता है। अपशिष्ट कुछ घंटों या कई महीनों या यहां तक कि सैकड़ों हजारों वर्षों तक रेडियोसक्रिय रह करते हैं। यह उनकी रेडियोसक्रियता के स्तर और प्रकृति पर निर्भर करता है, इन रेडियोसक्रिय अपशिष्टों को विमुक्त अपशिष्ट (exempt waste), निम्न और मध्यस्तरीय अपशिष्ट (low & intermediate level waste) में वर्गीकृत किया जा सकता है। रेडियोसक्रिय अपशिष्ट का सबसे महत्वपूर्ण और लाभकारी गुण 'इसका रेडियोसक्रिय जोखिम (radioactive hazard) क्षमता समय के साथ कम हो जाती है, जो अपशिष्ट में मौजूद रेडियोन्यूक्लाइड की अर्धायु (half-life) पर निर्भर करती है'। ऐसी विशेषता उन्हें पारंपरिक रासायनिक या औद्योगिक अपशिष्ट से सार्थक अलग करती है, जिनकी जोखिम क्षमता या विषाक्तता समय के साथ नहीं बदलती है और अन्य उपयुक्त प्ररूप (suitable form) के रूपांतरण (transformation) होने तक स्थिर रहती है।
निम्न और मध्यवर्ती स्तर का अपशिष्ट (एल. आई. एल. डब्ल्यू)
निम्न और मध्यवर्ती स्तर के अपशिष्ट (एल. आई. एल. डब्ल्यू.) रेडियोसक्रिय अपशिष्ट विकिरण सुविधाओं और यूरेनियम प्रक्रमण, ईंधन फैब्रिकेशन, नाभिकीय ऊर्जा संयंत्रों, अनुसंधान रिएक्टरों, रेडियोकेमिकल सुविधाओं और ईंधन पुनर्संसाधन से लेकर नाभिकीय ईंधन चक्र प्रचालन में उत्पन्न होते हैं। एल. आई. एल. डब्ल्यू. में आम तौर पर उच्च मात्रा और कम स्तर की रेडियोसक्रियता होती है। उन्हें उनकी भौतिक प्रकृति के आधार पर अलग किया जाता है और उनके प्रभावी उपचार (effective treatment) के लिए उनके स्वरूप के आधार पर विभिन्न प्रबंधन तकनीकें स्थापित की गई हैं। उन्हें आगे उनकी रेडियोसक्रियता के साथ-साथ रेडियोन्यूक्लाइड के अर्धायु के आधार पर अल्पकालिक और दीर्घकालिक अपशिष्टों के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। विभिन्न नाभिकीय प्रतिष्ठानों में विविध प्रकृति के एल. आई. एल. डब्ल्यू. की सार्थक मात्रा उत्पन्न होती है।.
वे मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं:
प्राथमिक अपशिष्ट, जिसमें रेडियोसक्रिय संदूषित उपकरण (धात्विक हार्डवेयर) भुक्तशेष विकिरण स्रोत आदि शामिल हैं।.
द्वितीयक अपशिष्ट विभिन्न प्रचालन सक्रियता, संरक्षी रबडय और प्लास्टिक के घर्षण, सेलुलोजिक और रेशायुक्त पदार्थ, कार्बनिक आयन विनिमय रेजिन फिल्टर कार्ट्रिजस (exchange resin filter cartridges) और अन्य से उत्पन्न होते हैं।
उच्च स्तर अपशिष्ट
पूरे ईंधन चक्र में अधिकांश (~99%) रेडियोधर्मिता वाले उच्च स्तर के रेडियोसक्रिय द्रव अपशिष्ट (एच. एल. डब्ल्यू.) का उत्पादन भुक्तशेष ईंधन के पुनर्संसाधन के दौरान किया जाता है। इस अपशिष्ट की एक प्रमुख धारा जलीय रेडियोसक्रिय अपशिष्ट है जो भुक्तशेष ईंधन प्रक्रमण के पहले चक्र निष्कर्षण (extraction) से उत्पन्न होता है। इसके अलावा दीर्घजीवी (long-lived) रेडियोन्यूक्लाइड की सार्थक सांद्रता (concentration) या निर्धारित सीमा से अधिक क्षय ऊष्मा (decay heat) के कारण सतह समीपस्थ निपटान सुविधाएँ (near surface disposal facilities) में ठोस अपशिष्ट को निपटान के लिए उपयुक्त नहीं है क्योकि इन्हें भी उच्च स्तर के अपशिष्ट के रूप में माना जा सकता है। दीर्घजीवी रेडियोसक्रिय अपशिष्ट का विचार-विषय नाभिकीय ऊर्जा की सफलता के लिए बहस का केंद्र बिंदु रहा है। इस प्रकार एच. एल. डब्ल्यू. के प्रबंधन की योजना जीवमंडल से उनके प्रभावी विलगन (isolation) और कई पीढ़ियों के लिए विस्तारित अवधि तक उनकी निरंतर निगरानी की आवश्यकता को ध्यान में रक्खा जाता है। इस उद्देश्य को दीर्घकालिक पूर्ण करने के लिए, बहुस्तरीय सुरक्षा अपशिष्ट विलगन प्रणालियों (isolation systems) का उपयोग किया जाता है ताकि मानव पर्यावरण में रेडियोन्यूक्लाइड की आवाजाही को रोका जा सके।
रेडियोसक्रिय अपशिष्टों का प्रबंधन
रेडियोसक्रिय अपशिष्ट प्रबंधन संयंत्रों में अपनाई गई प्रक्रियाओं और प्रौद्योगिकियों के चुनाव में अपशिष्ट न्यूनीकरण और आयतन में कमी पर अत्यंत जोर दिया जाता है। एक अपशिष्ट प्रबंधन दर्शन के रूप में, किसी भी भौतिक रूप में कोई भी अपशिष्ट को पर्यावरण में तब तक नहीं छोड़ा जाता है जब तक कि उसे साफ़ नहीं किया जाता है, पर्यावरण में छोड़ने की छूट नहीं दी जाती है या नियमों से बाहर नहीं रखा जाता है। रेडियोसक्रिय अपशिष्ट के प्रबंधन के लिए परिचालन क्षमता और इसके अवलोकन के लिए एक स्वतंत्र नियामक क्षमता को ध्यान में रखते हुए एक व्यापक रेडियोसक्रिय अपशिष्ट प्रबंधन स्थापित किया गया है।
मानव स्वास्थ्य, पर्यावरण और भावी पीढ़ियों की सुरक्षा के प्राथमिक उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए, भारत में रेडियोसक्रियता अपशिष्टों के सुरक्षित प्रबंधन हेतु समग्र दर्शन निम्नलिखित अवधारणा पर आधारित है:
प्रभावी प्रबंधन में अंतिम निपटान से पहले संपृथक (segregation), अभिलक्षणन (characterization), प्रहस्तन (handling), उपचार, अनुकूलन (conditioning) और मानीटरन शामिल है।
ठोस अपशिष्ट (Solid Waste)
विभिन्न परमाणु प्रतिष्ठानों में विविध प्रकार के एल. आई. एल. अपशिष्टों की पर्याप्त मात्रा रेडियोसक्रियता ठोस अपशिष्टों के रूप में उत्पन्न होती है। ठोस अपशिष्टों का उपचार और कंडीशनिंग किया जाता है, ताकि कंटेनर में रखे रेडियोसक्रिय पदार्थों की गतिशीलता को कम करने के तरीकों से अपशिष्टों की मात्रा कम हो सके। आज उपचार और कंडीशनिंग प्रक्रियाओं की एक विस्तृत श्रृंखला पूर्ण विकसित औद्योगिक प्रचालन के साथ उपलब्ध है जिसमें कई अंतःसंबंधित चरण और विविध प्रौद्योगिकियाँ शामिल हैं। 30 वर्ष से कम अर्धायु (half-life) अपशिष्ट से जुड़े विकिरणकीय जोखिम कुछ सौ वर्षों में रेडियोसक्रिय क्षय होने से काफी कमी आ जाती हैं। अपशिष्ट का निपटान विशेष निर्मित इंजीनियरिंग मॉड्यूल जैसे पत्थरों से ढकी खाइयाँ, प्रबलित कंक्रीट खाई और सतह समीपस्थ निपटान सुविधाएँ (एन. एस. डी. एफ.) में टाइल होल में किया जाता है। निपटान संरचनाएँ नियंत्रित क्षेत्रों में जमीन के ऊपर और नीचे दोनों जगह स्थित हैं और रेडियोसक्रियता के प्रभावी संरोधन और वियोजन (containment isolation) को सुनिश्चित करने के लिए बहु अवरोध सिद्धांत (multi barrier principle) के आधार पर डिज़ाइन की गई हैं जब तक कि यह हानिरहित स्तर तक क्षय न हो जाए।जहाँ निपटान संरचनाएँ एन. एस. डी. एफ. स्थित हैं, उन पर निरंतर निगरानी रखी जाती है। यह निगरानी योजनाबद्ध तरीके से लगाए गए बोरवेलों की मदद से की जाती है। नियमित रूप से भूमिगत मिट्टी और पानी के नमूनों की निगरानी करके यह सुनिश्चित किया जाता है कि निपटान अपशिष्टों में मौजूद रेडियोसक्रियता का प्रभाव नियंत्रित हो।
उच्च स्तरीय ठोस अपशिष्टों में अल्प तथा दीर्घायु दोनों प्रकार के रेडियोन्यूक्लाइड्स की उच्च सांद्रता होती है, जिसके कारण जैवमंडल से उच्च डिग्री के वियोजन (isolation) की आवश्यकता होती है और आमतौर पर भूगर्भीय निपटान सुविधा (जी. डी. एफ.) में अंतिम निपटान की आवश्यकता होती है। एक महत्वपूर्ण विचार यह था कि दीर्घकालिक निपटान सर्वोत्तम किया जाएगा वहाँ ऐसे उपयुक्त स्थलों की पहचान करना होगा जहां अपशिष्टों को दफनाया जा सके, जिसे गभीर भूगर्भीय निपटान (deep geological disposal) कहा जाता है।
द्रव अपशिष्ट (LIL)
द्रव अपशिष्ट धाराओं (Liquid waste streams) को विभिन्न तकनीकों जैसे कि फिल्टरन, अधिशोषण (adsorption), रासायनिक उपचार, वाष्पीकरण (evaporation), आयन विनिमय (ion exchange); रिवर्स ऑस्मोसिस आदि द्वारा पूर्व उपचारित (pre-treated) किया जाता है, इसके बाद उपयुक्त मैट्रिक्स में स्थिर किया जाता है, जो अपशिष्ट की प्रकृति, आयतन और रेडियोसक्रिय सामग्री पर निर्भर करता है।
गैसीय अपशिष्ट (Gaseous Waste)
गैसीय अपशिष्ट को उत्पत्ति के स्रोत पर उपचारित किया जाता है। गैसीय अपशिष्ट के प्रभावी उपचार के लिए सक्रिय चारकोल (activated charcoal) पर अधिशोषण, अवशोषण (absorption)/मार्जन (scrubbing), उच्च दक्षता वाले कण वायु फिल्टर आदि द्वारा फिल्टरन करने वाली विभिन्न तकनीकों का उपयोग किया जाता है।
उच्च स्तरीय अपशिष्ट का प्रबंधन
उच्च स्तरीय रेडियोसक्रिय अपशिष्ट भुक्तशेष ईंधन के पुनर्संसाधन के दौरान उत्पन्न होता है। उच्च स्तरीय अपशिष्ट में अधिकांश रेडियोसक्रिय आइसोटोप बड़ी मात्रा में विकिरण उत्सर्जित करते हैं और उनके अर्धायु लंबे होते हैं। भारतीय संदर्भ में उच्च स्तरीय अपशिष्ट का प्रबंधन निम्नलिखित तीन चरणों में किया जाता है:
काचन (vitrification)
भारत उन कुछ देशों में से एक है जिसने काचन की तकनीक में महारत हासिल की है। वर्षों से बी. ए. आर. सी. ने एच. एल. डब्ल्यू. के काचन के लिए प्रौद्योगिकी विकसित की है। भारत को ट्रॉम्बे, तारापुर और कलपक्कम में काचन संयंत्र प्रचालन होने का एक अनूठा गौरव प्राप्त है।
हमारे ट्रॉम्बे स्थित मौजूदा संयंत्र में, काचन प्रक्रिया मूल रूप से एक बैच ऑपरेशन है जिसमें पूर्व-सांद्रित अपशिष्टों और कांच बनाने वाले योजकों का तापन और पिघलाना शामिल है। यह प्रेरण हीटिंग (induction heating) के आधार पर इंडक्शन हीटेड मेटलिक मेल्टर (Induction Heated Metallic Melter) में किया जाता है।
जबकि ट्रॉम्बे संयंत्र में पॉट ग्लास प्रौद्योगिकी पर आधारित है, जो जूल हीटेड सिरेमिक मेल्टर (जे. एच. सी. एम.) संकल्पना का उपयोग करता है। जूल मेल्टर प्रौद्योगिकी अनिवार्य रूप से एक एकल चरण प्रक्रिया है, जहाँ एक बोरोसिलिकेट ग्लास मैट्रिक्स में एच. एल. डब्ल्यू. का निश्चलीकरण एक दुर्गलनीय-आस्तरित गलनित्र (Refractory-Lined Melter) में प्राप्त किया जाता है। जूल हीटेड सिरेमिक मेल्टर (जे. एच. सी. एम.) प्रक्रिया कांच के उच्च ताप गतिविधि का दोहन करती है जो उच्च तापमान पर एक विद्युत चालक बन जाता है और प्रवाह बिंदु के पास इसकी श्यानता (viscosity) में अनुकूल परिवतित होता है, जिससे उत्पाद निष्क्रमण (product withdrawal) और बंद करने में मदद मिलती है। तारापुर की उन्नत विट्रिफिकेशन प्रणाली (Advanced Vitrification System) और एच.एल.डब्ल्यू. के विट्रिफिकेशन के लिए जे.एच.सी.एम. को नियोजित करने वाले अपशिष्ट स्थिरीकरण संयंत्र, कलपक्कम की विशिष्ट विशेषताओं में प्रवाह क्षमता (throughput) में वृद्धि, उच्च फयर्नस तापमान की उपलब्धता और प्रचालक कौशल (operator skills) पर न्यूनतम निर्भरता शामिल हैं।
कोल्ड क्रूसिबल इंडक्शन मेल्टर (सी. सी. आई. एम.) अतिसक्रिय तरल अपशिष्ट (high level liquid waste) के विट्रिफिकेशन के लिए एक भविष्य की तकनीक के रूप में उभर रहा है। यह इन-सेल उपकरण के रूप में कॉम्पैक्ट एवं उपयोगी होने के अतिरिक्त, उन्नत अपशिष्ट भारण (waste loading) और संवर्धित गलनित्र आयु (enhanced melter life) की विभिन्न अपशिष्ट अवस्थाएँ उपचार करने के लिए लचीलापन (flexibility) और सुग्राहिता (susceptibility) प्रदान करता है। सी.सी.आई.एम. का विनिर्माण एक बेलनाकार आयतन बनाने वाले संस्पर्शी खंडों (contiguous segments) से किया जाता है, जो विद्युत इन्सुलेट सामग्री की एक पतली परत द्वारा अलग किया जाता है। क्रूसिबल का शीतलन सुनिश्चित करते हुए, क्रूसिबल में प्रेरित धाराओं द्वारा बिजली अपव्यय को कम करने के लिए खंडों की संख्या, आकार और उनके बीच इन्सुलेशन अंतर को अनुकूलित करने की आवश्यकता होती है।
काचित अपशिष्ट का अंतरिम भंडारण (Interim Storage of Vitrified Waste)
काचित उत्पाद को उपयुक्त कंटेनरों और ओवरपैक में रखा जाता है और रेडियोसक्रिय क्षय, ऊष्मा और निगरानी के लिए 15-20 वर्षों की अवधि के लिए संग्रहीत किया जाता है। उत्पाद के व्यवहार (product behavior) पर पर्याप्त डेटा उत्पन्न किया जा सकता है और उत्पाद की विकिरण और तापीय स्थितियों (thermal conditions) को उस स्तर तक स्थिर करने की अपेक्ष की जाती है जहां उत्पाद का वहन सक्षम हो सकें। जिसे सुरक्षा और तकनीकी-मितव्यय को ध्यान में रखकर, एक प्राकृतिक ड्राफ्ट एयर कूलिंग सिस्टम भंडारण वॉल्ट (storage vault) के लिए तैयार किया गया है।
अपशिष्टे से संपत्ति
अति रेडियोसक्रिय तरल अपशिष्ट (High level radioactive liquid waste) में विभिन्न उपयोगी विखंडन उत्पाद जैसे 137Cs, 90Sr,106Ru आदि होते हैं, जिनके कई औद्योगिक और चिकित्सा अनुप्रयोग हैं। इन समस्थानिकों (isotopes) से संबद्ध ऊर्जा का उपयोग रक्त किरणन (blood irradiation), खाद्य परिरक्षण (food preservation), सीवेज उपचार, चिकित्सीय अनुप्रयोगों, निकटोपचार (brachytherapy) और विभिन्न अन्य औद्योगिक अनुप्रयोगों के लिए होता है। इन रेडियोसक्रिय अपशिष्ट से उपयोगी समस्थानिकों का पृथक्करण और पुनर्प्राप्ति करके परिनियोजित अपशिष्ट को सामाजिक सेवाएं हेतु संसाधन की सामग्री बनाती है।
किरणन के लिए 137137 सीज़ियम ग्लास पेंसिल
137Cs का उपयोग रक्त किरणक, खाद्य किरणक, सीवेज अपशिष्ट के किरणन आदि जैसे विभिन्न अनुप्रयोगों के लिए 60 डिग्री सेल्सियस तक एक प्रमुख वैकल्पिक विकिरण स्रोत के रूप में किया जा सकता है। 60Co की तुलना में 137Cs के लंबे अर्धायु के कारण, विकिरण स्रोतों को कम आवृत्ति पर प्रतिस्थापित करने की आवश्यकता होती है। जिसमें मुख्य विखंडन उत्पाद (principal fission product) से एक रेडियोसक्रिय अपशिष्ट के रूप में बड़ी मात्रा में 137Cs उपलब्ध होता है। चयनित निष्कर्षणों (selective extractants) के घरेलू स्तर पर विकास और उनकें परिनियोजन के परिणामस्वरूप अपशिष्ट से 137 सीज़ियम की बड़ी मात्रा की पुनःप्राप्ति हुई है। पुनःप्राप्त 137Cs विलयन को रक्त किरणन के रूप में उपयोग करने के लिए गैर-फैलाव सीज़ियम ग्लास पेंसिल में परिवर्तित किया जाता है। 137Cs के कुछ लाख Ci को सफलतापूर्वक पुनःप्राप्ति किया गया है और अपशिष्ट निश्चलीकरण संयंत्र ट्रॉम्बे (Waste Immobilization Plant Trombay) में 137Cs के 2.0 से 5.0 Ci/gm की गतिविधि वाले Cs ग्लास पेंसिल में परिवर्तित किया गया है। इन पेंसिलों को कठोर गुणता आश्वासन (rigorous quality assurance) सुनिश्चित करने के बाद ब्रिट के माध्यम से विभिन्न अस्पतालों में आपूर्ति की गई है। खाद्य किरणन जैसी अन्य किरणन प्रक्रिया के लिए सीएस ग्लास पेंसिल का उपयोग करने के लिए अनुसंधान और विकास किया जा रहा है।
विकिरण भेषजिक अनुप्रयोग के लिए 90यट्रियम के दोहन हेतु 90स्ट्रोनियम
99Sr, अपशिष्ट में मौजूद एक अन्य समस्थानिक, बीटा क्षय द्वारा 90Y तक क्षय हो जाता है, जिसका अनुप्रयोग कैंसर के उपचार के दौरान चिकित्सीय उपयोग के लिए विकिरण भेषजिक उत्पाद (radiopharmaceutical product) के रूप में किया जाता है। एचएलडब्ल्यू से स्ट्रोंटियम के पृथक्कीरण/पुनर्प्राप्त करने और यट्रियम जनरेटर में परिवर्तित करने हेतु इन-हाउस विकसित स्ट्रोंटियम चयनित निष्कर्षक को सफलतापूर्वक परिनियोजित किया गया है। 90Y को इन-हाउस विकसित झिल्ली तकनीक का उपयोग करके शोधित 90Sr से दोहन करके रेडियोफार्मास्युटिकल अनुप्रयोग के लिए आपूर्ति की जाती है।
नेत्र कैंसर के उपचार के लिए 106Ru
106Ru का नेत्र कैंसर के उपचार के लिए निकटोपचार (ब्रैचीथेरेपी) एक महत्वपूर्ण अनुप्रयोग है। अब तक 106Ru पट्टिकाओं (plaques) का आयात किया गया है। प्रौद्योगिकी की लागत प्रभाविता के साथ नेत्र कैंसर के उपचार के लिए नाभिकीय अपशिष्ट से 106Ru की पुनःप्राप्ति और चांदी की पट्टिका युक्त 106Ru के संविरचन (fabrication) हेतु एक आयात विकल्प के रूप में सफलतापूर्वक विकसित किया गया है। Ru-106 गतिविधि की लगभग 300-600 माइक्रोक्युरी वाली Ru पट्टिकाओं का उत्पादन किया जाता है और आंखों के कैंसर के इलाज के लिए विकिरण और आइसोटोप प्रौद्योगिकी बोर्ड (ब्रिट) के माध्यम से विभिन्न नेत्र अस्पतालों में आपूर्ति की जाती है। स्वदेशी रूप से विकसित Ru-106 नेत्र पट्टिकाओं की लागत कम हैं और उनका प्रदर्शन अंतर्राष्ट्रीय मानक के बराबर है।
सारांश
हमारे नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम की शुरुआत से ही रेडियोसक्रिय अपशिष्ट के सुरक्षित प्रबंधन को उच्च प्राथमिकता दी गई है। 'गहन सुरक्षा' अवधारणा, सुप्रतिष्ठित पद्धतिओं और स्वतंत्र एजेंसी द्वारा सुरक्षा समीक्षा के साथ नतोन्नत डिजाइन (rugged design) के परिणामस्वरूप, पांच दशकों से अधिक समय से भारत ने रेडियोसक्रिय अपशिष्ट के सुरक्षित प्रबंधन के लिए एक उत्कृष्ट रिकॉर्ड प्रदर्शित किया है। अनुसंधान और विकास में सतत प्रयासों ने रेडियोसक्रिय अपशिष्टों के प्रबंधन के क्षेत्र में अद्भुतीय प्रक्रमों और प्रौद्योगिकियों के स्वदेशी विकास को संभव बनाया है। साथ ही इन प्रौद्योगिकियों का उपयोग अपशिष्ट आयतन को न्यूनतम करने, इंजीनियर्ड मैट्रिक्स में रेडियोन्यूक्लाइड के प्रभावी पृथकन, उत्सर्जन को कम करने और सामाजिक अनुप्रयोगों के लिए रेडियोसक्रिय अपशिष्ट से उपयोगी रेडियोन्यूक्लाइड का पृथक्कीरण कर अपशिष्ट से संपदा प्राप्त करने के लिए किया गया है। ऐसे विकास देश को रेडियोसक्रिय अपशिष्ट प्रबंधन के क्षेत्र में विश्व स्तर पर अग्रणी बनने में सक्षम बनाते हैं।