भारतीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के लिए बीएआरसी की गतिविधियाँ
भारत एकमात्र विकासशील देश है जिसने विद्युत उत्पादन के लिए परमाणु रिएक्टरों को स्वदेशी रूप से विकसित, प्रदर्शित और नियोजित किया है। यह मुख्य रूप से बीएआरसी में कई दशकों के व्यापक वैज्ञानिक अनुसंधान और प्रौद्योगिकी विकास के माध्यम से संभव हुआ। इस संबंध में डॉ. होमी भाभा वास्तुकार थे। देश में उपलब्ध परमाणु अयस्क से कुल मिलाकर लगभग 78,000 टन यूरेनियम धातु और लगभग 518,000 टन थोरियम धातु निष्कर्षित की जा सकती है। यदि संपूर्ण यूरेनियम संसाधनों का उपयोग पहले प्राकृतिक यूरेनियम-ईंधन वाले दाबयुक्त भारी जल रिएक्टरों (PHWRs) में किया जाता है, तो अनुमान है कि लगभग 420 गीगावॉट-वर्ष विद्युत का उत्पादन किया जा सकता है। परिणामी अवक्षयित यूरेनियम और इन दाबयुक्त भारी जल रिएक्टरों (PHWRs) से अलग किए गए प्लूटोनियम को यदि फास्ट ब्रीडर रिएक्टरों (FBRs) में उपयोग किया जाए, तो अतिरिक्त 54,000 गीगावॉट-वर्ष विद्युत उत्पन्न की जा सकती है। इन फास्ट ब्रीडर रिएक्टरों (FBRs) में, थोरियम असेंबलियों को उनके ब्लैंकेट और कम-शक्ति वाले क्षेत्रों में भारण करके यूरेनियम -233 (U233) का उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। अंततः Th-U233 ईंधन वाले ब्रीडर रिएक्टरों के उत्पादन में परिवर्तन करके, भारत अतिरिक्त 358,000 गीगावॉट -वर्ष विद्युत का उत्पादन करने में सक्षम होना चाहिए। इस प्रकार, 500-600 गीगावॉट की स्थापित परमाणु ऊर्जा क्षमता पर भी, देश के परमाणु संसाधन अपने कोयला भंडार के विलुप्त होने पर भी विद्युत उत्पादन की जरूरतों को पूरा करने में सक्षम होंगे।
भारत में निर्मित पहले परमाणु ऊर्जा रिएक्टर तारापुर में दो क्वथन पानी रिएक्टर (BWRs) थे, जिनका निर्माण जनरल इलेक्ट्रिक (GE) द्वारा भारत-अमेरिका सहयोग के माध्यम से संपूर्ण (turnkey) परियोजनाओं के रूप में किया गया था। 1974 में कनाडाई समर्थन वापस लेने के बाद, बीएआरसी ने पीएचडब्ल्यूआर की स्थापना के एक भाग के रूप में, परमाणु ग्रेड पंप, फ्यूलिंग मशीन, ईंधन, क्लैड इत्यादि घटकों के विकास और परीक्षण की जिम्मेदारी ली। और सामान्य परिचालन से लेकर डिजाइन विस्तार की स्थिति तक पीएचडब्ल्यूआर के डिजाइन और सुरक्षा के लिए अन्य प्रमुख अनुसंधान एवं विकास सहयोग की जिम्मेदारी ली।
वर्ष 1979 में संयुक्त राज्य अमेरिका में थ्री माइल द्वीप (TMI) और उसके बाद 1986 में चेरनोबिल दुर्घटनाओं के बाद, नए परमाणु रिएक्टरों के डिजाइन के सिद्धांत में बहुत से परिवर्तन हुआ। III और III+ पीढ़ी के रिएक्टरों में निश्चेष्ट संरक्षा प्रणालियाँ अभिन्न अंग बन गईं। इस सिद्धांत ने बीएआरसी द्वारा डिजाइन किए जा रहे प्रगत भारी पानी रिएक्टर (AHWR) की अवधारणा को जन्म दिया। एएचडब्ल्यूआर ने पीएचडब्ल्यूआर की दाब ट्यूब अवधारणा को बरकरार रखा लेकिन डिजाइन में कई निष्क्रिय प्रणालियों को अपनाया जिससे रिएक्टर जनसंख्या केंद्र के करीब नियोजित करने के लिए पर्याप्त सुरक्षित हो गया। इसके अलावा, एएचडब्ल्यूआर ने थोरियम से प्रदर्शन रिएक्टर के रूप में अहम विद्युत (60% से अधिक) उत्पादन करने का लक्ष्य रखा है। बेशक, परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के तीसरे चरण में थोरियम से बड़े पैमाने पर विद्युत उत्पादन की उम्मीद की गई है, इससे पहले एएचडब्ल्यूआर थोरिया आधारित ईंधन के प्रहस्तन, निर्माण और पुनस्संसाधन के लिए पर्याप्त अनुभव प्रदान करेगा।
2008 में अंतर्राष्ट्रीय नागरिक परमाणु सहयोग समझौते में प्रवेश करने के बाद, भारत को अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से परमाणु रिएक्टर स्थापित करने का अवसर मिला। इस संधि ने भारतीय नाभिकीय ऊर्जा सयंत्र (NPP) के लिए ईंधन की निरंतर आपूर्ति भी सुनिश्चित की। बीएआरसी त्वरित क्षमता निर्माण के लिए स्वदेशी रूप से दाबित जल रिएक्टर (PWRs) विकसित करने की योजना बना रहा है। बीएआरसी ने स्वदेशी दाबित जल रिएक्टर (PWRs) कार्यक्रम शुरू करने के लिए दाबपात्र, अभिक्रियता चालन आदि के लिए फोर्जन तकनीक हासिल कर ली है।
भारतीय गलित लवण प्रजनक रिएक्टर (IMSBR) भारतीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के तीसरे चरण के हिस्से के रूप में थोरियम ज्वलन का प्लैट्फॉर्म है। इसमें ईंधन सतत परिसंचारी गलित फ्लोराइड नमक के रूप में होता है जो अंततः विद्युत उत्पादन के लिए उष्मा को अतिक्रांतिक कार्बनडाईऑक्साइड आधारित ब्रेटन चक्र (SCBC) में स्थानांतरित करने के लिए उष्मा विनिमयक के माध्यम से प्रवाहित होता है ताकि मौजूदा विद्युत रूपांतरण चक्र की तुलना में बड़ी मात्रा में ऊर्जा रूपांतरण हो सके। द्रव ईंधन के कारण, ऑनलाइन पुनस्संसाधन संभव है, 233Pa (232Th से 233U की रूपांतरण श्रृंखला में निर्मित) को निष्कर्षित करना और इसका कोर के बाहर 233U तक क्षय होना, इस प्रकार तापीय न्यूट्रॉन वर्णक्रम में भी प्रजनन करना संभव हो जाता है। इसलिए भारतीय गलित लवण प्रजनक रिएक्टर (IMSBR) स्वपोषी 233U- Th ईंधन चक्र में प्रचालित किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, एक तापीय रिएक्टर होने के नाते, 233U की आवश्यकता (द्रुत स्पेक्ट्रम की तुलना में) कम है, इस प्रकार उच्च नियोजन क्षमता की संभावना है।
बीएआरसी द्वारा इन रिएक्टरों के लिए आवश्यक नई प्रौद्योगिकी का विकास किया जा रहा है। इनमें 7Li संवर्धन, लवण निर्माण और शुद्धिकरण, लवण अभिलक्षणिकरण और रसायन विज्ञान, संरचनात्मक पदार्थ विकास और अभिलक्षणिकरण, नाभिकिय श्रेणी ग्रेफाइट विकास और अभिलक्षणिकरण, घटक विकास, अतिक्रांतिक कार्बनडाईऑक्साइड आधारित ब्रेटन चक्र (SCBC) और भारतीय गलित लवण प्रजनक रिएक्टर (IMSBR) के लिए पुनस्संसाधन शामिल हैं। इसके अलावा, 5 मेगावाट के भारतीय गलित लवण प्रजनक रिएक्टर (IMSBR) की सभी प्रमुख प्रणालियों के पूर्ण पैमाने पर प्रदर्शन के लिए एक समर्पित सुविधा, गलित लवण प्रजनक रिएक्टर विकास सुविधा (MSBRDF) डिजाइन की जा रही है। बीएआरसी ने पात्र के लिए Ni-Mo-Cr-Ti मिश्र धातु भी विकसित की है। भारतीय गलित लवण प्रजनक रिएक्टर (IMSBR) के ईंधन लवण इष्टतमीकरण, अभिलक्षणिकरण, लवण निर्माण, उष्मीय द्रवचालित और संक्षारण अध्ययन के लिए अनुसंधान एवं विकास किया जा रहा है।
इसके अलावा, बीएआरसी उष्मारासायनिक जल विभाजन द्वारा हाइड्रोजन उत्पादन के लिए उच्च ताप प्रक्रिया उष्मा प्रदान करने के उद्देश्य से नवोन्मेषी उच्च तापमान रिएक्टर (IHTR) भी विकसित कर रहा है। यह एक गलित लवण शीतित पेबल संस्तर प्रकार का रिएक्टर है। इसमें पेबल के रूप में बने ट्रिसो प्रकार के कण ईंधन का उपयोग किया जाता है, जिसे पिघले हुए फ्लोराइड लवण से ठंडा किया जाता है। इस प्रकार, शीतलक तापमान 665 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है जो हाइड्रोजन संयंत्र के साथ दक्ष इंटरफ़ेस बनाता है। वर्तमान में, 20 मेगावाट नवोन्मेषी उच्च तापमान रिएक्टर (IHTR) को प्रदर्शन रिएक्टर के रूप में अभिकल्पित किया जा रहा है। उच्च तापमान उष्मा पाइप का विकास, ग्रेफाइट ऑक्सीकरण अध्ययन की सुविधा, ट्रिसो लेपित कण ईंधन, ईंधन पेलेट निर्माण, नाइओबियम मिश्र धातु और परीक्षण लूप के घटक, नवोन्मेषी उच्च तापमान रिएक्टर (IHTR) प्रयोगात्मक सुविधा के लिए ग्रेफाइट घटकों की मशीनिंग, शीतलक पर तापीय द्रवचालित अध्ययन पूरा हो चुका है।