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श्री विवेक भसीन
निदेशक, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (भा.प.अ. केंद्र)
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श्री विवेक भसीन, विशिष्टक वैज्ञानिक एवं निदेशक, नाभिकीय ईंधन वर्ग (एनएफजी), भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (भा.प.अ. केंद्र) ने भा.प.अ. केंद्र के 14 वें निदेशक के रूप में, डॉ. अजित कुमार मोहान्ती , अध्यपक्ष, परमाणु ऊर्जा आयोग एवं भारत सरकार के सचिव, परमाणु ऊर्जा विभाग से पदभार ग्रहण किया है। श्री भसीन भा.प.अ. केंद्र प्रशिक्षण विद्यालय के 31वें बैंच में सफलतापूर्वक प्रशिक्षण पूरा करने के बादवर्ष 1988 में रिएक्टर अभियांत्रिकी प्रभाग में पदस्थय हुए थे। श्री भसीन को नाभिकीय ईंधनों के विकास, नाभिकीय रिएक्टर घटक अभिकल्पन (डिजाइनिंग) एवं विद्युत रिएक्टरों के संरचनात्मक अखंडता निर्धारण में उनकी सुविज्ञता के लिए व्याापक रूप से पहचान मिली है।
तीन दशकों से अधिक कार्यकाल के दौरान, उन्होंने कई विद्युत रिएक्टरों की दीर्घायु सुनिश्चित करने के लिए विभिन्नध कार्यक्रमों और गतिविधियों में महत्व्पूर्ण योगदान दिया है जिनमें आरएपीएस-1, टीएपीएस-1 एवं 2, एमएपीएस एवं टीएपीएस-3 एवं 4के अतिरिक्ति कैगा, काकरापार एवं नरोरा में प्रचालनरत रिएक्टरों की संरचनात्मंक अखंडता का निर्धारण और पुन:स्थापन शामिल है।
श्री भसीन ने ट्रांबे में अप्सरा-अपग्रेडेड रिएक्टर के लिए ईंधन संविरचन की सुविधाओं और फिशन-मोली (स्वास्थ्य देखभाल में व्यापक अनुप्रयोगों वाला एक रेडियोधर्मी आइसोटोप) के उत्पा्दन हेतु नये संयंत्र की स्थांपना में अग्रणी भूमिका निभाई है। उन्होंने कल्पाक्कम स्थित द्रुत प्रजनक परीक्षण रिएक्टर (एफबीटीआर) के लिए प्लूटोनियम-यूरेनियम कार्बाइड ईंधन के उत्पादन दर में सुधार करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
श्री भसीन ने विभिन्न सम्मान प्राप्त किए हैं जिनमें इंडियन न्यूएक्लियर सोसाइटी मेडल (2002), पऊवि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पुरस्कार (2006) एवं होमी भाभा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पुरस्कार (2014) शामिल हैं। वे भारतीय राष्ट्रीय इंजीनियरिंग अकादमी के अध्येता हैं और नाभिकीय विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के क्षेत्र में उनके 300 से अधिक प्रकाशन हैं।
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डॉ. अजीत कुमार मोहांती
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डॉ. अजीत कुमार मोहांती
पूर्व निदेशक, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (12 मार्च, 2019 - 15 सितम्बर, 2023)
डॉ. अजीत कुमार मोहांती को 12 मार्च, 2019 को भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के 13वें निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया।
डॉ. मोहांती का जन्म वर्ष 1959 में ओडिशा में हुआ था। उन्होंने वर्ष 1979 में एमपीसी कॉलेज, बारीपदा से भौतिकी में ऑनर्स के साथ स्नातक की पढ़ाई पूरी की और वर्ष 1981 में कटक के रेवेनशॉ कॉलेज से स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूर्ण की । वर्ष 1983 में, वे भापअकें प्रशिक्षण विद्यालय के 26वें बैच से स्नातक होने के बाद नाभिकीय भौतिकी प्रभाग, भापअकें में शामिल हो गए। उन्होंने मुंबई विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।
डॉ. मोहांती ने नाभिकीय भौतिकी के कई क्षेत्रों में कार्य किया, जिनमें सेर्न, जिनेवा, ब्रुकहेवन नेशनल लेबोरेटरी (बीएनएल), संयुक्त राज्य अमेरिका में सीएमएस प्रयोग,टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान (टीआईएफआर), PHENIX में पेलेट्रॉन एक्सेलेरेटर का उपयोग करके उप-कूलम्ब बैरियर से आपेक्षिक पद्धति तक संघट्टन ऊर्जा सम्मिलित है।
डॉ. मोहांती विभिन्न संगठनों में कई मानद पदों पर पदस्थे रहे हैं। उन्होंने भारतीय भौतिकी संघ (आईपीए) में महासचिव और बाद में इसके अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। वे भारत-सीएमएस सहयोग के प्रवक्ता, साहा नाभिकीय भौतिकी संस्थान के निदेशक और भापअकें के भौतिकी वर्ग के निदेशक रह चुके हैं। वे दो बार वर्ष 2002-2004 और वर्ष 2010-2011 के दौरान सेर्न साइंटिफिक एसोसिएट रहे हैं।
डॉ. मोहांती को वर्ष 1988 में इंडियन फिजिकल सोसाइटी से यंग फिजिसिस्ट अवार्ड और वर्ष 1991 में इंडियन नेशनल साइंस एकेडमी यंग साइंटिस्ट पुरस्कार और वर्ष 2001 में परमाणु ऊर्जा विभाग के होमी भाभा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। हाल ही में, डॉ. मोहांती को उत्कल विश्वविद्यालय द्वारा मानद डॉक्ट्रिन ऑफ लिटरेचर (डी.लिट.) मानद उपाधि से सम्मानित किया गया।
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श्री कमलेश नीलकंठ व्यास
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श्री कमलेश नीलकंठ व्यास
पूर्व निदेशक, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (23 फरवरी , 2016 - 12 मार्च, 2019)
श्री कमलेश नीलकंठ व्यास एमएस विश्वविद्यालय, वड़ोदरा से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक हैं। वर्ष 1979 में भापअकें प्रशिक्षण विद्यालय के 22वें बैच में प्रशिक्षण पूरा करने के बाद, उन्होंने भापअकें के रिएक्टर इंजीनियरिंग प्रभाग के ईंधन अभिकल्पन एवं विकास अनुभाग में कार्यग्रहण किया। श्री व्यास ने नाभिकीय रिएक्टर ईंधन के अभिकल्पन एवं विश्लेषण के क्षेत्र में कार्य किया है। वे सामरिक महत्वी के अनुप्रयोगों के लिए एक नवीन ईंधन के अभिकल्पन एवं विकास के लिए भी उत्तरदायी थे। उन्होंने तापीय द्रवचालित एवं क्रांतिक रिएक्टर कोर घटकों के प्रतिबल विश्लेषण में विस्तृत रूप से कार्य किया है। श्री व्यास ने एक इंजीनियर के रूप में सामरिक परियोजनाओं को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। श्री व्यास ने आईटीईआर, फ्रांस में स्थापित किए जाने वाले टेस्ट ब्लैंकेट मॉड्यूल के अभिकल्पन एवं विश्लेषण में भी भाग लिया है।
श्री व्यास को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, जिनमें इंडियन न्यूक्लियर सोसाइटी उत्कृष्ट सेवा पुरस्कार वर्ष 2011, होमी भाभा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पुरस्कार वर्ष 2006, वर्ष 2007, 2008, 2012 और 2013 में पऊवि पुरस्कार शामिल हैं। वे इंडियन नेशनल एकेडमी ऑफ इंजीनियर्स के अध्येता भी हैं।
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डॉ. शेखर बसु
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डॉ. शेखर बसु
पूर्व निदेशक, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (19 जून, 2012 - 23 फरवरी, 2016)
डॉ.शेखर बसु ने वर्ष 1974 में वीजेटीआई, मुंबई विश्वविद्यालय से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। एक वर्ष के भापअकें प्रशिक्षण विद्यालय कार्यक्रम को पूरा करने के बाद, उन्होंने वर्ष 1975 में रिएक्टर इंजीनियरिंग प्रभाग, भापअकें में कार्यग्रहण किया।
राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने डॉ. शेखर बसु, पूर्व निदेशक, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (भापअ केंद्र) को पद्मश्री पुरस्कार प्रदान किया। पुरस्कार वितरण समारोह दिनांक 31.03.2014 को राष्ट्रपति भवन में आयोजित किया गया।
डॉ. बसु और उनके सहयोगी मुख्य रूप से रेडियोधर्मिता के विभिन्न स्तरों वाले ठोस, द्रव और गैस रूपों में अपशिष्ट के सुरक्षित रेडियोधर्मी निपटान के लिए कार्यनीतियों के विकास हेतु उत्तरदायी हैं। वे नाभिकीय अपशिष्ट के प्रभावी प्रबंधन में भी शामिल हैं जिसमें अंतिम निपटान से पहले विसंयोजन, अभिलक्षणन, प्रहस्त।न, उपचार कंडीशनिंग और निगरानी शामिल है। उनके पास उच्च स्तरीय द्रव अपशिष्ट सहित विभिन्न प्रकार के रेडियोधर्मी अपशिष्टोंन के सुरक्षित प्रबंधन में व्यापक औद्योगिक संचालन का अनुभव है। नाभिकीय ऊर्जा की सार्वजनिक स्वीकृति काफी हद तक नाभिकीय अपशिष्ट के सुरक्षित प्रबंधन पर निर्भर करती है और डॉ. बसु ने दाबित भारी पानी रिएक्टरों के लिए संवृत्त ईंधन चक्र के सभी पश्च–भाग संचालन के लिए सर्वोत्तम पद्धतियां विकसित की हैं।
प्रोटोटाइप समुद्री नाभिकीय नोदन संयंत्र के परियोजना निदेशक के रूप में, डॉ. बसु इससे संबंधित सभी गतिविधियों के सफल विकास के लिए उत्तरदायी थे। यह बहु-विषयक परियोजना रिएक्टर, वाष्प प्रणाली, इलेक्ट्रिकल और उपकरण प्रणाली के लिए बहुत बड़ी संख्या में घटकों के अभिकल्पन एवं विकास में शामिल है। संयंत्र के लिए उपकरणों और प्रणालियों के विकास और परीक्षण के लिए कई परीक्षण सुविधाएं स्थापित की गईं। सामरिक महत्व का यह संयंत्र कल्पालक्कम में निर्मित किया गया था और प्रचालनरत है। वर्तमान में नोदन संयंत्र घटकों के विकास और कार्मिकों के प्रशिक्षण के लिए संयंत्र के चारों ओर अनुसंधान एवं प्रशिक्षण सुविधाएं स्थापित की गई हैं।
डॉ. बसु नाभिकीय पुन:चक्रण बोर्ड के मुख्य कार्यपालक थे, वे पुनर्प्रसंस्करण और अपशिष्ट प्रबंधन से जुड़े नाभिकीय पुन:चक्रण संयंत्रों के अभिकल्पन, विकास, निर्माण और संचालन के लिए उत्तरदायी थे। उन्होंने ट्रॉम्बे, तारापुर और कल्पाक्कम में पुनर्प्रसंस्करण संयंत्रों, ईंधन भंडारण सुविधाओं और नाभिकीय अपशिष्ट उपचार सुविधाओं का अभिकल्पेन और निर्माण किया है। इस कार्य में संयंत्र के प्रदर्शन के उन्नयन और पर्यावरणीय मुद्दों के समाधान के लिए घटकों, प्रणालियों और प्रक्रमों के विकास के लिए अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं का निष्पादन भी शामिल है। डॉ. बसु जूल हीटेड सिरेमिक मेल्टर के सुदूर विकमीशनन के लिए भी उत्तरदायी रहे हैं, जिसका उपयोग तारापुर में उच्च स्तरीय अपशिष्ट के काचन हेतु किया गया था। इस ऑपरेशन ने "विकमीशनन के लिए अभिकल्पंन" अवधारणा के लिए मूल्यवान इनपुट प्रदान किए हैं।
डॉ. बसु ने पहले एकीकृत नाभिकीय पुन:चक्रण संयंत्र का अभिकल्पन तैयार किया है जो भारतीय नाभिकीय पुन:चक्रण कार्यक्रम को परिपक्वता के एक बड़े स्तर पर ले जाएगा और नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम के पश्च-भाग के लिए पूर्ण समाधान का मार्ग प्रशस्त करेगा। यह संयंत्र, जो वर्तमान में अभिकल्पान के प्रगत चरण में है, देश को दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा प्रदान करेगा।
अपने कैरियर के शुरूआत में, डॉ. बसु ने तारापुर में क्वथन जल रिएक्टर (बीडब्ल्यूआर) के लिए अभिकल्पीन ईंधन छड़ों का गहन अध्ययन किया और नाभिकीय पदार्थों के परिवहन से संबंधित मुद्दों पर भी कार्य किया। डॉ. बसु के कई लेख राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं। उन्होंने कई विनाशकारी और अविनाशी तकनीकों का उपयोग करके नाभिकीय पदार्थों में गैर-समान अवशिष्ट प्रतिबलों के मूल्यांकन पर बड़े पैमाने पर कार्य किया है और गहन संख्यात्मक अनुकार के माध्यम से प्रेक्षणों को भी मान्य किया।
डॉ. बसु ने अमेरिकी परिकल्पित ईंधन के पुनर्प्रसंस्करण के लिए अमेरिकी सरकार के साथ 'व्यवस्था और कार्यविधियों' के समापन सत्र में भारत का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने विद्युत रिएक्टरों के भुक्तशेष ईंधन के प्रबंधन के लिए भारतीय कार्यनीति का प्रदर्शन करने के लिए वियना स्थित अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) में आयोजित 'भुक्तशेष ईंधन प्रबंधन सम्मेलन' में भी भारत का प्रतिनिधित्व किया।
इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटल रिएक्टर (आईटीईआर) (टोकामक आधारित फ्यूज़न रिएक्टर) परियोजना, जिसमें भाग लेने वाले देशों में भारत भी एक है, जो कैडराचे, फ्रांस में स्थापित किया जा रहा है। डॉ. बसु कार्यक्रम के लिए ताप निष्कासन और शीतलन जल प्रणालियों के लिए अंतरराष्ट्रीय अभिकल्पन समीक्षा समिति के अध्यक्ष हैं, जो विश्व समुदाय के लिए दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा प्रदान करेगा।
डॉ. बसु को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। इनमें इंडियन न्यूक्लियर सोसाइटी अवार्ड 2002, पऊवि ग्रुप अचीवमेंट अवार्ड 2006 और पऊवि स्पेशल अचीवमेंट अवार्ड 2007 शामिल हैं। वे इंडियन नेशनल एकेडमी ऑफ इंजीनियर्स (आईएनएई) के अध्येता भी रहे हैं।
डॉ. शेखर बसु का गुरुवार, 24 सितंबर 2020 को कोलकाता में कोविड-19 के कारण निधन हो गया।
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डॉ. रतन कुमार सिन्हा
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डॉ. रतन कुमार सिन्हा
पूर्व निदेशक, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (19 मई, 2010 - 19 जून, 2012)
डॉ.रतन कुमार सिन्हा ने वर्ष 1972 में पटना विश्वविद्यालय से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की उपाधि प्राप्त की और विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त किया। भापअ केंद्र प्रशिक्षण विद्यालय का एक वर्ष का पाठ्यक्रम पूरा करने के बाद उन्होंंने वर्ष 1973 में भापअ केंद्र के रिएक्टर इंजीनियरिंग प्रभाग में कार्यग्रहण किया। भापअ केंद्र के निदेशक के रूप में नियुक्ति से पहले, उन्होंने रिएक्टर अभिकल्पन एवं विकास वर्ग, भापअ केंद्र के निदेशक और अभिकल्पकन, विनिर्माण एवं स्वचालन समूह के निदेशक के रूप में कार्य किया।
विशेषज्ञता और मार्गदर्शन के क्षेत्र
डॉ. सिन्हा थोरियम के उपयोग के लिए भापअ केंद्र में अभिकल्पन एवं विकास के तहत नए प्रगत रिएक्टरों के कार्यक्रमों का मार्गदर्शन कर रहे हैं। इनमें प्रगत भारी पानी रिएक्टर (एएचडब्ल्यूआर) शामिल हैं, जो अपनी अधिकांश क्षमता थोरियम से उत्पन्न करता है, और इसमें कई नवीन निश्चेष्ट सुरक्षा प्रणालियाँ हैं। रिएक्टर को उपकरण की खराबी, मानवीय त्रुटियों और यहां तक कि अंदरूनी लोगों के द्वेषपूर्ण कृत्यों के खिलाफ सुदृढ़ बनाने के लिए अभिकल्पित किया गया है। डॉ. सिन्हा ने, इस प्रकार उन प्रौद्योगिकियों के विकास का मार्गदर्शन किया, जो बड़े पैमाने पर परिनियोजन परिदृश्य में, आबादी वाले क्षेत्रों के समीप प्रगत नाभिकीय ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना को सक्षम बनाए। एएचडब्ल्यूआर के अभिकल्पन में अधिकांश प्रौद्योगिकीय नवाचारों को उनके मार्गदर्शन में बड़ी प्रायोगिक सुविधाओं में मान्य किया गया है।
डॉ. सिन्हा ने एक संहत उच्च तापमान रिएक्टर (सीएचटीआर) के अभिकल्पन एवं विकास की शुरूआत की, जिसका पहला उद्देश्य हाइड्रोजन उत्पादन के लिए पानी के दक्ष ताप-रासायनिक विभाजन के लिए आवश्यक लगभग 1000 डिग्री सेल्सियस पर ऊष्मा जनन प्रक्रम को प्रदर्शित करना था, और दूसरा इसका उद्देश्य अभिगमन योग्य नाभिकीय विद्युत पैक के लिए आवश्यक प्रौद्योगिकियों को प्रदर्शित करना है जो दूरस्थश क्षेत्रों में नियोजित किए जा सकते हैं, जिनके प्रचालन के लिए व्यावहारिक कुशलता की कोई आवश्यकता नहीं है, और 15 वर्षों तक ईंधन भरने की कोई आवश्यकता नहीं है। वे और उनकी टीम इन उद्देश्यों को पूरा करने के लिए थोरियम आधारित लेपित कण प्रकार के नाभिकीय ईंधन, स्वाभाविक रूप से सुरक्षित न्यूट्रॉनिक अभिलक्षणों को प्राप्त करने के लिए एक रिएक्टर भौतिकी अभिकल्पान, शीतलक के रूप में गलित सीसा-बिस्मथ का उपयोग, प्राकृतिक परिसंचरण, निष्क्रिय आपातकालीन शीतलन प्रणाली जो वायुमंडल में कोर ऊष्मा पहुंचाती है, निष्क्रिय शटडाउन का पहला अभिकल्पतन विकसित कर रहे हैं। यंत्र और अत्याधिक उच्च तापमान पर प्रचालन में सक्षम निष्क्रिय नियंत्रण उपकरण। ये नवाचारी विशेषताएं दुनिया के किसी अन्य रिएक्टर में विद्यमान नहीं हैं।
भारी पानी विमंदित दाब नलिका प्रकार के रिएक्टरों के जिरकोनियम मिश्रधातु शीतलक चैनल, जो नाभिकीय ईंधन के वाहक होते हैं, उन पर विभिन्न प्रकार के अनूठे निम्निन क्रियाविधियों का प्रयोग किया जाता है जिससे उनकी आयु प्रभावित है। डॉ. सिन्हा ने रेसिड्यूल सर्विस लाइफ का आकलन करने और इन चैनलों के लिए सर्विस हेतु उपयुक्तता मानदंड निर्धारित करने के लिए व्यापक कार्य किया। डॉ. सिन्हा और उनकी टीम ने हाइड्रोजन की मात्रा के लिए दाब नलिकाओं के रिमोट स्क्रैप सैंपलिंग, विस्थापित गार्टर स्प्रिंग स्पेसर्स की रिमोट रिपोजिशनिंग, शीतलक चैनल बेल्लित जोड़ों की रिमोट डिटैचमेंट और निरीक्षण के समाधान के लिए कई रिमोट निरीक्षण प्रौद्योगिकियां, शीतलक चैनल घटकों का विस्तार एवं प्रतिस्थापन के लिए प्रौद्योगिकियां विकसित की। इस कार्य ने ज़िर्कलॉय-2 दाब नलिकाओं सहित सात भारतीय दाबित भारी पानी रिएक्टरों (पीएचडब्ल्यूआर) के लगभग दस पूर्ण विद्युत वर्षों तक निरंतर सुरक्षित प्रचालन की सुविधा प्रदान करने में योगदान दिया।
डॉ. सिन्हा और उनकी टीम ने रिएक्टर प्रणालियों की समय पर मरम्मत और अनुरक्षण के लिए कई स्वदेशी प्रौद्योगिकियों का विकास किया। कैलेंड्रिया पोत के अंदर उनके मॉडरेटर इनलेट मैनिफोल्ड की विफलता के बाद, उन्होंने मद्रास परमाणु बिजली घर (एमएपीएस) के दो रिएक्टरों के पुन:स्थापन में योगदान दिया। डॉ. सिन्हा ने अगम्य कैलेंड्रिया के भीतर निरीक्षण करने और सक्रिय प्रवाह वाले कोर के क्षेत्र से टूटे हुए मैनिफोल्ड को हटाने के लिए विशेष उपकरणों के विकास हेतु मार्गदर्शन दिया। इसके बाद, उन्होंने एक टीम का नेतृत्व किया, जिसने दो रिएक्टरों में इस कार्य का निष्पादन किया। पीएचडब्ल्यूआर के मुख्य क्षेत्र में इस तरह का अनुरक्षण कार्य विश्व में पहली बार किया गया था। उन्होंने कैलैंड्रिया में विमंदक भारी पानी का प्रवेश प्रदान करने के लिए क्षतिग्रस्त विमंदक इनलेट मैनिफोल्ड को प्रतिस्थापित करने के लिए स्पार्जर चैनलों के विकास की संकल्पना और मार्गदर्शन किया। इन स्पार्जर चैनलों की तैनाती के बाद, एमएपीएस की दोनों इकाइयों ने अपनी निर्धारित पूर्ण शक्ति पर काम करने की क्षमता पुनर्प्राप्ति कर ली।
अपने कैरियर के शुरूआत में, डॉ. सिन्हा ने भापअ केंद्र में 100 मेगावाट के ध्रुव अनुसंधान रिएक्टर शीतलक चैनलों और अन्य मुख्य-आंतरिक संरचनात्मक घटकों के अभिकल्पीन, विकास एवं स्थापना का कार्य किया।
डॉ. सिन्हा ने अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के कई महत्वपूर्ण मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व किया। इनमें नवोन्मेषी नाभिकीय रिएक्टरों और ईंधन चक्रों (आईएनपीआरओ) पर आईएईए की अंतरराष्ट्रीय परियोजना की संचालन समिति शामिल है, जिसके वे चार वर्षों तक अध्यक्ष रहे।
पुरस्कार और सम्मान
डॉ. सिन्हा को मैसूर विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टरेट ऑफ साइंस (डी.एससी.) की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया। उन्हें कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए हैं। इनमें पहला होमी भाभा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पुरस्कार, वासविक पुरस्कार, भारतीय नाभिकीय सोसायटी पुरस्कार और पऊवि विशेष योगदान पुरस्कार भी शामिल है। वर्ष 1998 में उन्हें भारतीय राष्ट्रीय इंजीनियरिंग अकादमी का अध्येता चुना गया।
डॉ. बसु को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। इनमें इंडियन न्यूक्लियर सोसाइटी अवार्ड 2002, पऊवि ग्रुप अचीवमेंट अवार्ड 2006 और पऊवि स्पेशल अचीवमेंट अवार्ड 2007 शामिल हैं। वे इंडियन नेशनल एकेडमी ऑफ इंजीनियर्स (आईएनएई) के अध्येता भी रहे हैं।
डॉ. शेखर बसु का गुरुवार, 24 सितंबर 2020 को कोलकाता में कोविड-19 के कारण निधन हो गया।
हाल ही के प्रकाशन (2006 से आगे)
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शीर्षक : ऑटोक्लेव्ड का प्रवाह व्यवहार, 20% शीतलन कार्य, तापमान सीमा में सामान्यि तापमान से 800 डिग्री सेल्सियस तापमान तक Zr-2.5Nb मिश्रधातु दाब नलिका पदार्थ
लेखक: दुरेजा, ए.के. ; सिन्हा, एस.के.; श्रीवास्तव, ए.; सिन्हा, आर.के.; चक्रवर्ती, जे.के.; शेषु , पी.; पावस्कर, डी.एन
प्रकाशन वर्ष: 2011
स्रोत: जर्नल ऑफ न्यूक्लियर मैटेरियल्स। 2011. वॉल्यूम. 412 (1): पृ. 22-29
लेखक: बोर्गोहेन, ए.; जयसवाल, बी.के.; माहेश्वरी, एन.के.; विजयन, पी.के.; साहा , डी.; सिन्हा, आर.के
- शीर्षक: लेड बिस्मथ यूटेक्टिक लूप में प्राकृतिक परिसंचरण अध्ययन
लेखक: बोर्गोहेन, ए.; जयसवाल, बी.के.; माहेश्वरी, एन.के.; विजयन, पी.के.; साहा , डी.; सिन्हा, आर.के
प्रकाशन वर्ष: 2011
स्रोाशनत : परमाणु ऊर्जा में प्रगति 2011. वॉल्यूम. 53 (4): पृ. 308-319
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शीर्षक: क्वरथन जल रिएक्टर (बीडब्ल्यूआर) कार्य स्थितियों के तहत सीएचएफ की परिघटना संबंधी अनुमान
लेखक: चंद्राकर, डी.के.; विजयन, पी.के.; सिन्हा, आर.के.; अरिटोमी, एम.
प्रकाशन वर्ष: 2011
स्रोत: परमाणु ऊर्जा में प्रगति। 2011: पीपी. प्रेस में आलेख
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शीर्षक: एक दाबित नलिका प्रकार के क्वेथन जल रिएक्टर के मल्टीपल लूप प्राकृतिक परिसंचरण प्रणाली में स्टीम ड्रम स्तर की गतिशीलता
लेखक: जैन, वी.; कुलकर्णी , पी.पी.; नायक, ए.के.; विजयन, पी.के.; साहा, डी.; सिन्हा, आर.के
प्रकाशन वर्ष: 2011
स्रोत: एनल्स ऑफ न्यूक्लियर एनर्जी। 2011: पीपी. प्रेस में आलेख
डॉ. आर.के. सिन्हा के अन्य प्रकाशन
मीडिया से बातचीत
- 19 जुलाई, 2011 को दूरदर्शन टीम के साथ भापअ केंद्र के निदेशक डॉ. आर. के. सिन्हा का साक्षात्कार
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डॉ. एस. बॅनर्जी
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डॉ. एस. बॅनर्जी
पूर्व निदेशक, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (30 अप्रैल, 2004 - 19 मई, 2010)
डॉ. एस. बॅनर्जी भौतिक धातुकर्म एवं पदार्थ विज्ञान के क्षेत्र में अपने कार्य के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जाने जाते हैं। उन्होंने जिरकोनियम और टाइटेनियम आधारित मिश्रधातुओं के धातु विज्ञान एवं नाभिकीय रिएक्टर घटकों के विकास में उनके अनुप्रयोगों में अपना योगदान दिया है। उनके कार्य ने नाभिकीय रिएक्टरों में संरचनात्मक पदार्थों की विकिरण स्थिरता का विश्लेषण करने के लिए एक आधार प्रदान किया। शेप मेमोरी मिश्रधातुओं के विकास में डॉ. बॅनर्जी और उनके सहयोगियों के योगदान को भारतीय हल्के लड़ाकू विमान परियोजना में ऊष्माध सिकुड़ने योग्य युग्मन में उनके अनुप्रयोग पाए गए हैं। वे होमी भाभा राष्ट्रीय संस्थान के कुलाधिपति थे ।
वर्ष 2005 में उन्हें भारत सरकार के नागरिक पुरस्कार, पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।
डॉ. बॅनर्जी को इंजीनियरिंग विज्ञान में शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार (1989), भारतीय धातु संस्थान का जी.डी. बिड़ला स्वर्ण पदक (1997), पदार्थ विज्ञान के लिए आईएनएसए पुरस्कार (2001) और भारतीय परमाणु सोसायटी पुरस्कार (2003) प्राप्त हुआ। उन्हें प्राप्त अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों में एक्टा मेटालर्जिका आउटस्टैंडिंग पेपर अवार्ड (1984) और हम्बोल्ट रिसर्च अवार्ड (2004) उल्लेखनीय हैं। डॉ. बॅनर्जी भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी, भारतीय विज्ञान अकादमी, भारतीय राष्ट्रीय इंजीनियरिंग अकादमी और राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी के अध्येता रहे।
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श्री विश्वेश्वर भट्टाचार्जी
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श्री विश्वेश्वर भट्टाचार्जी
पूर्व निदेशक, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (03 अप्रैल, 2001 - 30 अप्रैल, 2004)
श्री विश्वेश्वर भट्टाचार्जी ने 03 अप्रैल, 2001 को निदेशक के रूप में पदभार ग्रहण किया। इससे पूर्व, वे परियोजना निदेशक, विरल पदार्थ परियोजना, मैसूर और निदेशक, रसायन इंजीनियरिंग एवं प्रौद्योगिकी वर्ग, भापअ केंद्र के परियोजना निदेशक रह चुके थे। उन्हों ने यूरेनियम कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, जादुगुडा, बिहार की स्थापना में मुख्य भूमिका निभाई थी जो भारत के नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम के लिए आवश्यक संपूर्ण यूरेनियम की आपूर्ति करता है। बाद में, भट्टाचार्जी ने समृद्ध यूरेनियम और अन्य सामरिक महत्व के पदार्थों के उत्पादन के लिए आवश्यक हाई स्पीड रोटर (एचएसआर) के विकास के लिए भापअ केंद्र, मुंबई में बहु-विषयक अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों की ओर रुख किया। भारत में एचएसआर प्रौद्योगिकी की सफल शुरूआत ने देश को विशिष्ठ श्रेणी में पहुंचा दिया है और "सामरिक महत्व" के कुछ पदार्थों का उत्पादन संभव हो पाया है। भट्टाचार्जी ने दो अन्य परियोजनाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई - नाभिकीय ऊर्जा केंद्र से जुड़ा हुआ निर्लवणीकरण संयंत्र और विशेष पदार्थ परियोजना। भापअ केंद्र द्वारा पहले ही विभिन्न राज्यों को 15 निर्लवणीकरण संयंत्रों की आपूर्ति की जा चुकी है। भापअ केंद्र के मार्गदर्शन में कल्पाक्कम (एनडीडीपी) स्थित मद्रास परमाणु बिजली घर के निकट एक विशाल निर्लवणीकरण संयंत्र का निर्माण भी किया गया था।
श्री विश्वेश्वर भट्टाचार्जी का 01 सितंबर, 2018 को निधन हो गया।
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डॉ. अनिल काकोडकर
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डॉ. अनिल काकोडकर
पूर्व निदेशक, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (01 अप्रैल, 1996 - 01 अप्रैल, 2001)
डॉ. अनिल काकोडकर ने ध्रुवा के अभिकल्पसन एवं निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने भारतीय पीएचडब्ल्यूआर की बड़ी संख्या में महत्वपूर्ण प्रणालियों के स्वदेशी विकास में अत्यपधिक योगदान दिया है। अपने साढ़े चार दशक के कार्य अवधि के दौरान, उन्होंने रिएक्टर कार्यक्रम के लिए उच्चए विशेषज्ञता प्राप्त वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की एक कुशल टीम बनाई है। उन्होंने हमारे सीमित यूरेनियम संसाधनों को ध्यान में रखते हुए थोरियम के उपयोग के लिए प्रौद्योगिकियों के विकास का भी समर्थन किया। थोरियम के उपयोग में औद्योगिक स्तर का अनुभव प्राप्त करने के लिए, उन्होंने प्रगत भारी पानी रिएक्टर की संकल्पना की, जिसका लक्ष्य अपनी दो तिहाई विद्युत थोरियम से प्राप्त करना है। उन्होंने अनुसंधान एवं विकास क्षेत्र संबंधी 9वीं पंच वर्षीय योजना के भाग की संकल्पना की और केंद्र की संगठनात्मक संरचना में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन किए। वर्ष 1998 का पोखरण परीक्षण उनके कार्यकाल में किया गया था। डॉ. काकोडकर के मार्गदर्शन में भारत अंतरराष्ट्रीय थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटल रिएक्टर (आईटीईआर) का हिस्सा बन गया। होमी भाभा राष्ट्रीय संस्थान (एचबीएनआई), के तत्वावधान में डॉ. काकोडकर ने एक अद्वितीय पीएचडी कार्यक्रम की संकल्पना की। उन्होंने यूजीसी-डीएई कंसोर्टियम के निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसमें विश्वविद्यालय के छात्रों को पऊवि की अनुसंधान एवं विकास सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं।
वर्तमान में डॉ. अनिल काकोडकर आईएनएई सतीश धवन चेयर ऑफ इंजीनियरिंग एमिनेंस का कार्यभार देख रहे हैं ।
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डॉ. ए.एन. प्रसाद
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डॉ. ए.एन. प्रसाद
पूर्व निदेशक, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (05 मई, 1993 - 31 मार्च, 1996)
वह एक विशिष्ट नाभिकीय वैज्ञानिक और सुरक्षा उपायों के मुद्दे पर एक अंतरराष्ट्रीय प्राधिकारी हैं। उन्होंने भारतीय विज्ञान संस्थान, बैंगलुरु से नाभिकीय ऊर्जा इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री ग्रहण की तथा बॉम्बे से प्रगत नाभिकीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा ओकरिज स्कूल ऑफ रिएक्टर टेक्नोलॉजी, यूएसए से नाभिकीय रसायन इंजीनियरिंग का अध्ययन किया । उन्होंने वर्ष 1964 में प्लूटोनियम को पृथक करने के लिए ट्रॉम्बे में भारत के पहले ईंधन पुनर्संसाधन संयंत्र की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके साथ, भारत इस प्रौद्योगिकी को विकसित करने वाला दुनिया का मात्र पांचवां देश बन गया, अन्य देश अमेरिका, तत्कालीन यूएसएसआर, यूके और फ्रांस हैं। नाभिकीय संस्थापन में अपने लंबे कार्यकाल के दौरान उन्होंने नाभिकीय ईंधन चक्र के प्रासंगिक उच्च प्रौद्योगिकी क्षेत्रों पर कार्य करना जारी रखा, विशेष रूप से 'ईंधन चक्र के पश्च भाग में' विशेषज्ञता हासिल की । वह कई वर्षों तक परमाणु ऊर्जा विभाग की सुरक्षा समिति के अध्यक्ष भी रहे। भारत में नाभिकीय प्रौद्योगिकी के विकास में उनके उत्कृष्ट योगदान को ध्याोन में रखते हुए, उन्हें मई, 1993 में भापअ केंद्र का निदेशक और भारतीय परमाणु ऊर्जा आयोग का सदस्य नियुक्त किया गया।
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डॉ. राजगोपाल चिदम्बरम
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डॉ. राजगोपाल चिदम्बरम
पूर्व निदेशक, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (05 अप्रैल, 1990 - 31 मार्च, 1993)
डॉ. राजगोपाल चिदम्बरम ने वर्ष 1962 में न्यूट्रॉन विवर्तन और क्रिस्टलोग्राफी पर अपना कार्य शुरू किया। वे न्यूट्रॉन डिफ्रेक्टोमीटर के साथ डेटा संग्रह के लिए स्वचालन की शुरूआत करने वाले पहले व्यक्ति थे। उन्होंने भारत में क्रिस्टलोग्राफिक कंप्यूटिंग की शुरूआत करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने नाभिकीय विस्फोटकों के अभिकल्पन पर कार्य शुरू किया। वे प्लूटोनियम की अवस्था का समीकरण तैयार करने वाले पहले व्यक्ति थे। उन्होंने यंत्र के लिए अंतःस्फोट विधि पर कार्य किया, जिसका परीक्षण वर्ष 1974 में पोखरण में किया गया था। इस प्रयोजन के लिए, डॉ. चिदंबरम ने डीआरडीओ के साथ व्यूक्तिगत रूप से बातचीत करके, भापअ केंद्र में शॉकवेव अनुसंधान शुरू किया। वर्ष 1998 के परीक्षणों के लिए, उन्होंने एक बहुत ही सघन अंत:स्फोट प्रणाली प्रस्तुत की, जिसका प्रयोग हथियार बनाने में किया जा सकता था। पोखरण परीक्षण के बाद, डॉ. चिदम्बरम ने उच्च दाब भौतिकी के क्षेत्र में "विवृत अनुसंधान" पर कार्य प्रारंभ किया। इसके लिए, संपूर्ण नैदानिक सुविधाओं के साथ प्रोजेक्टाइल लॉन्च करने के लिए डायमंड एनविल सेल, गैस-गन जैसे उपकरणों की एक पूरी श्रृंखला स्वदेशी रूप से बनाई गई थी। उन्होंने अवस्था के समीकरण, पदार्थों की अवस्था स्थिरता आदि की गणना के लिए सैद्धांतिक उच्च दाब अनुसंधान की नींव भी रखी। डॉ. चिदंबरम भापअ केंद्र में सुपर कंप्यूटर के विकास की शुरूआत करने के लिए भी उत्तरदायी रहे।
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डॉ. पी.के. आयंगर
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डॉ. पी.के. आयंगर
पूर्व निदेशक, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (10 मार्च, 1984 - 31 जनवरी, 1990)
डॉ. पी.के. आयंगर और डॉ. रमन्ना ने ट्रॉम्बे में न्यूट्रॉन प्रकीर्णन कार्यक्रम का नेतृत्व किया। उन्होंने रिएक्टर और नाभिकीय प्रौद्योगिकियों में महारत हासिल करने के व्यापक संदर्भ में वैज्ञानिकों के लिए एक लाभप्रद आधार प्रशिक्षण के रूप में न्यूट्रॉन बीम अनुसंधान के महत्व को पहचाना। उन्होंने न्यूट्रॉन के साथ संघनित पदार्थ के अध्ययन में भारत को विश्व मानचित्र पर मज़बूती से खड़ा किया। वर्ष 1964 की आईएईए बैठक के बाद, डॉ. रमन्ना और डॉ. आयंगर के सुझाव पर, आईएईए द्वारा दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में नाभिकीय रिएक्टरों में न्यूट्रॉन प्रकीर्णन शुरू करने के लिए एक कार्यक्रम शुरू किया गया था। आयंगर, फास्ट रिएक्टर असेंबली (पूर्णिमा-1) के विकास में भी शामिल थे। इसके बाद, कोर के रूप में यूरेनिल नाइट्रेट के विलयन के साथ एक महत्वपूर्ण असेंबली पूर्णिमा-2 का भी विनिर्माण किया गया। स्पंदित न्यूट्रॉन स्रोतों पर इटली और यूएसएसआर में डॉ. आयंगर का प्रशिक्षण, वीईसीसी, आरआरकेट और टीआईएफआर में नए त्वरकों की स्थांपना में उनकी नेतृत्वकारी भूमिका में महत्वकपूर्ण रही। डॉ. पी.के. आयंगर का बुधवार, 21 दिसंबर, 2011 को दोपहर में एक अल्प कालीन बीमारी के कारण निधन हो गया ।
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डॉ. राजा रमन्ना
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डॉ. राजा रमन्ना
पूर्व निदेशक, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (08 जनवरी, 1981 - 09 मार्च, 1984 एवं 01 जून, 1972 - 06 जून, 1978 )
डॉ. रमन्ना के मार्गदर्शन में शांतिपूर्वक नाभिकीय विस्फोटन (पीएनई) वर्ष 1974 में किया गया था और इस प्रयोग में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने ध्रुव रिएक्टर, आईजीसीएआर, कोलकाता साइक्लोट्रॉन सेंटर और इंदौर में केट जैसे अन्य महत्वपूर्ण नाभिकीय कार्यक्रमों में भी नेतृत्वकारी भूमिका निभाई, जिसका नाम उनके सम्मान में राजा रमन्ना सेंटर फॉर एडवांस्ड टेक्नोलॉजी रखा गया है। डॉ. रमन्ना ने वर्ष 1956 में अप्सरा रिएक्टर से न्यूट्रॉन किरणपुंजों का उपयोग करके नाभिकीय विखंडन में आधारीय अनुसंधान शुरू किया और उसका नेतृत्व किया। डॉ. रमन्ना की देखरेख में त्वरित न्यूट्रॉनों और गामा किरणों के साथ-साथ विखंडन में आनियत रूप से उत्सर्जित अल्फा कणों पर भी अग्रणी अनुसंधान कार्य किया गया। यह उनकी देखरेख में ही था, कि वर्ष 1958 में पऊवि प्रशिक्षण विद्यालय की स्थापना के साथ पऊवि में वैज्ञानिक जनशक्ति का विकास शुरू किया गया। उनके पीएचडी कार्य (किंग्स कॉलेज, लंदन से) में एक नए प्रकार के आयन कक्ष का विकास सम्मिलित था, जो न केवल नाभिकीय कण की ऊर्जा को माप सकता है, बल्कि कक्ष के विद्युत क्षेत्र की दिशा के संबंध में उसके कोण को भी माप सकता है। डॉ. राजा रमन्ना का निधन 24 सितंबर 2004 को मुंबई में हुआ।
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डॉ. होमी एन. सेठना
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डॉ. होमी एन. सेठना
पूर्व निदेशक, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (15 फरवरी, 1966 - 21 जनवरी, 1972)
डॉ. होमी एन. सेठना का परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में पहला कार्य, वर्ष 1952 में विरल मृदा और थोरियम-यूरेनियम सांद्रण को अलग करने के लिए मोनाजाइट के प्रसंस्करण के लिए अलवे, केरल में विरल मृदा संयंत्र की स्थापना करना था। इसके बाद, उन्होंने वर्ष 1955 में थोरियम नाइट्रेट और यूरेनियम सांद्रण का उत्पादन करने के लिए ट्रॉम्बे में संयंत्र की स्थापना की। नाभिकीय शुद्धता वाली यूरेनियम धातु के उत्पादन के लिए यूरेनियम धातु संयंत्र वर्ष 1959 में उनकी देखरेख में शुरू किया गया था। इस संयंत्र द्वारा उत्पादित पदार्थ को तत्पंश्चात सायरस रिएक्टर के लिए ईंधन के रूप में उपयोग किया गया। परियोजनाओं को समय पर पूरा करने की उनकी ख्याति को देखते हुए, डॉ. सेठना को सायरस रिएक्टर के निर्माण चरण (1956-58) के दौरान इसका परियोजना प्रबंधक बनाया गया था। डॉ. सेठना के कैरियर की सबसे प्रतिष्ठित उपलब्धि ट्रॉम्बे पुनर्संसाधन संयंत्र की स्थापना थी, जिसे 22 जनवरी, 1965 को राष्ट्र को समर्पित किया गया था। उनके नेतृत्व में निम्न-श्रेणी के यूरेनियम अयस्क के प्रसंस्करण के लिए वर्ष 1967 में एक यूरेनियम अयस्क भी टाटा नगर के पास जादुगुड़ा में शुरू की गई थी। इस संयंत्र के द्वारा अनुसंधान रिएक्टरों और विद्युत रिएक्टरों दोनों के लिए ईंधन की आपूर्ति की गई थी। यूरेनियम संवर्धन अध्ययन पर प्रारंभिक कार्य भी उनके मार्गदर्शन में शुरू किया गया था। डॉ. सेठना ने भारी पानी उत्पादन प्रक्रमों और अन्य समस्थानिक पृथक्करणों पर विकासात्मक कार्य शुरू किया। उनके मार्गदर्शन में ही भापअ केंद्र में ध्रुव का निर्माण शुरू किया गया था। उन्हें पद्म विभूषण सहित कई प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया ।
डॉ. सेठना का 05 सितंबर, 2010 को निधन हो गया।
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डॉ. होमी जहांगीर भाभा
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डॉ. होमी जहांगीर भाभा
परमाणु ऊर्जा स्थापना, ट्रॉम्बे (01 अगस्त, 1954 - 24 जनवरी, 1966)
डॉ. होमी जहांगीर भाभा (1909-1966) भारत के परमाणु ऊर्जा परिदृश्य के प्रमुख वास्तुकार थे। भाभा ने भारत में परमाणु ऊर्जा के लिए एक बड़ी भूमिका की कल्पना की और उसके अनुसार आधारीय विज्ञान एवं अनुसंधान के क्षेत्र में भारत और विकसित देशों के बीच बढ़ते अंतर को दूर करने के लिए वर्ष 1940 में ही "उत्कृष्ट अनुसंधान विद्यालय बनाने" की योजना बनाई। वर्ष 1945 में उनके द्वारा बनाया गया टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान (टीआईएफआर) आज मूलभूत विज्ञान अनुसंधान में अपनी उत्कृष्टता के लिए विश्व स्तर पर ख्यामति प्राप्ति है।
उन्होंने वर्ष 1954 में ट्रॉम्बे में (अब भापअ केंद्र) परमाणु ऊर्जा स्थापना, ट्रॉम्बे (एईईटी) (अब भापअ केंद्र) की स्थापना की, जिसे उन्होंने भारत का "औद्योगिक वर्साय" बनने का सपना देखा था, जो आज भी परमाणु ऊर्जा और वैज्ञानिक विकास की प्रगति का केंद्र बिंदु बना हुआ है। दो दशकों की छोटी सी अवधि में, डॉ. भाभा के नेतृत्व में, भारत ने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक सार्थक भूमिका निभाई। परमाणु ऊर्जा विभाग (पऊवि) के शुरूआती वर्षों में उन्होंने जो अनूठी संस्कृति और सौहार्द्र स्थापित किया, वह आज भी विभाग के कार्यबल के मन एवं मस्तिष्क में विद्यमान है।
डॉ. भाभा का दृढ़ विश्वास था कि "... हम जैसे लोगों का यह कर्तव्य है कि हम अपने देश में रहकर अन्य सौभाग्यशाली देशों की भांति अनुसंधान के उत्कृष्ट विद्यालय बनाएं।"
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